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तालाब के किनारे दो मेंढ़क रहा करते थे। एक का नाम टर था तो दूसरे का नाम था मर। वे दोनों रात होते ही तालाब के किनारे आ जाते और टर-टर की आवाज़ निकालते और खेलते रहते। वे अपनी इस दुनिया में बड़े प्रसन्न थे।
एक बार की बात है। रात के समय दो चोर उस तरफ़ आए, वह अपने साथ खूब सारा धन चुराकर लाए थे। उन्होंने पकड़े जाने के डर से सारा धन तालाब में डाल दिया और अगले दिन आने का सोचकर चल पड़े।
पहला मेंढक बोला- "टर! यदि ये सारा धन निकालने आएँगे तो हमारा सारा तालाब खराब हो जाएगा। हमसे हमारा घर भी छिन जाएगा।" मर उसकी इस बात से सहमत था। मर ने कहा- "उन्हें आने दो हम इन चोरों से निपट लेंगे।"
तभी टर को अपने मित्र नकलची तोते का स्मरण हो आया। वह मनुष्यों की आवाज़ बहुत अच्छी तरह से निकाल सकता था। अत: वे तोते के पास गए और अपनी व्यथा उसे कह सुनाई। तोते ने उन्हें मदद का वचन दिया।
नियत समय पर तोता तालाब के किनारे आ पहुँचा। वह पेड़ की घनी झाड़ियों में जा छुपा। ठीक आधी रात में दोनों चोर वहाँ आ पहुँचे। उनके हाथ में एक बड़ी-सी रस्सी व बड़ा-सा जाला था। उनको आता देखकर टर और मर चिल्लाने लगे। उनकी आवाज़ सुनकर तोता चौकन्ना हो गया।
वह आदमियों की आवाज़ें निकालने लगा। चोरों ने सुना की राजा के किसी सिपाही ने राजा को धन के छिपाने का स्थान बता दिया है। वह किसी भी समय अपनी सेना के साथ यहाँ आते होंगे। राजा की आने की खबर सुनकर चोर भाग निकले।
इस तरह टर और मर ने तोते की सहायता से अपना घर बचा लिया।
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