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एक निर्जन स्थान था। वहाँ अकेला एक आम का पेड़ था। उस स्थान पर दूर-दूर तक अन्य कोई पेड़ या पशु-पक्षी नहीं था। पेड़ कोई साथी न होने के कारण अकेला और दुखी था। उसे साथी की कमी सताती रहती थी।
एक बार उसकी डाल पर एक चिड़िया विश्राम करने के लिए आई। वह पेड़ पर बैठी ही थी कि उसे अचानक किसी की आवाज़ सुनाई दी। चिड़िया ने देखा कि पेड़ उसे पुकार रहा है। पेड़ बोला- "प्यारी चिड़िया! तुम कौन हो और यहाँ कैसी आई हो?"
चिड़िया बोली- "भाई! मैं एक दुखियारी हूँ। मैं दूर एक जंगल में निवास करती थी। मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे थे। मैं बड़ी ही प्रसन्न थी। परंतु हमारे जंगल में बंदरों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर वहाँ बड़ा उत्पात मचाया हुआ है। उन्होंने मेरे घोंसले को उजाड़ दिया और मेरे बच्चों को भी मार दिया। अब बहुत ही समय के बाद मुझे मातृत्व का सुख प्राप्त हुआ है। मुझे अंडे देने के लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश है। अब मैं नया स्थान ढूँढ रही हूँ इसलिए यहाँ आई हूँ।"
पेड़ बोला- "प्यारी चिड़िया! इस निर्जन स्थान पर तुम्हें और कोई पेड़ या स्थान नहीं मिलेगा। यहाँ कोई आता-जाता भी नहीं है। अत: तुम चाहो तो मुझ पर अपना निवास-स्थान बना सकती हो। मैं स्वयं बहुत अकेला हूँ। तुम मेरे साथ रहोगी तो मुझे भी एक साथी मिल जाएगा। मैं तुम्हें रोज़ मीठे फल दिया करूँगा। पेड़ की बात सुनकर चिड़िया प्रसन्न हो गई।"
उसने पेड़ पर अपना घोंसला बना लिया। अब पेड़ प्रसन्न रहने लगा। धीरे-धीरे दोनों में गहरी मित्रता हो गई। चिड़िया रोज़ पानी की तलाश में निकल जाती और दोपहर के समय वापस आ जाती। चिड़िया ने अंडे दिए। कुछ समय बाद उन अंडों में से बच्चे भी निकल पड़े। चिड़िया के बाहर जाते ही, पेड़ उसके बच्चों की रखवाली करता। अब वह दोनों बहुत खुश थे।
एक बार की बात है। एक दिन वहाँ एक शैतान बंदर आ पहुँचा। उसका आता देखकर पेड़ सर्तक हो गया। पेड़ ने उससे कहा- "ऐ बंदर! तेरे लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है। अत: तुम यहाँ से चले जाओ।" पेड़ की बात सुनकर बंदर को बहुत क्रोध आया। पेड़ ने बच्चों की सुरक्षा हेतु उन्हें घनी शाखाओं के बीच छुपा दिया। परंतु बच्चों की आवाज़ से बंदर को उनका पता चल गया।
वह पेड़ के मना करने पर भी पेड़ पर चढ़ गया। इससे पहले वह घोंसले के नज़दीक जा पाता, पेड़ ने अपनी वह टहनी गिरा दी जिस पर बंदर था। बंदर अचानक हुई इस कार्यवाही के तैयार नहीं था और ज़मीन पर गिरते ही उसकी मृत्यु हो गई।
मरे हुए बंदर को देखकर चिड़िया को समझते देर न लगी की पेड़ ने ही उसके परिवार की रक्षा की है। उसने पेड़ का धन्यवाद किया। अब वह दोनों साथ सुखपूर्वक रहने लगे। अत: कहा गया है कि सच्चा मित्र अपने मित्र की सदैव रक्षा और सहायता करता है।
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