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दूर देश में एक राजा हुआ करता था। उसका नाम था उदयभान। वह बहुत ही प्रतापी, बुद्धिमान, चतुर और वीर था। उसकी प्रजा ऐसा राजा पाकर बहुत प्रसन्न थी। उदयभान अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार राजा के दरबार में दो व्यापारी आए। वे दोनों राजा से फरियाद करने लगे।
राजा ने उनको अपनी फरियाद सुनाने को कहा। परंतु दोनों दरबार में पहले मैं, पहले मैं कहकर लड़ने लगे। राजा ने कहा- "तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपनी फरियाद एक-एक करके बताओ।"
पहला फरियादी बोला- "महाराज! मेरा नाम धनवीर है। मैं उत्तर में स्थित एक नगर का व्यापारी हूँ। नगर-नगर व्यापार के लिए जाना मेरा काम है। हमारे नगर में गेहूँ व गन्ने की अच्छी पैदावार होती है।"
वह आगे बोला- "महाराज! मैंने सुना था कि दक्षिण में चावल व मसालों की अच्छी पैदावार होती है। परंतु गेहूँ व गन्ना वहाँ नहीं होता। अत: मैंने वहाँ जाने का निर्णय किया। भाग्य से मैंने वहाँ इन्हें बेचकर खूब धन भी कमाया।"
"महाराज! अपने माल को बेचकर जब मैं आपके राज्य की सीमा से सटे हुए जंगलों से गुज़र रहा था, तो रास्ते में मुझे लखपत मिला। रात घिर आई थी। अत: हमने रात को सुरक्षित स्थान पर एक साथ ठहरने की सोची। हम दोनों ने एक पेड़ के नीचे रात गुज़ारी। अगली सुबह जब मैं उठा तो इसने मेरा सारा धन हड़प लिया था।"
अब राजा ने दूसरे व्यक्ति को अपनी बात कहने का अवसर दिया। वह बोला- "राजन! मैं निशांत देश का निवासी लखपत हूँ। मेरा व्यवसाय कपड़े बनाना व उन्हें बेचना है। मैं नगर-नगर जाकर अपने कपड़े बेचता हूँ। उस दिन मैं पास ही के एक नगर से अपने कपड़े बेचकर जंगल के समीप पहुँचा। तभी सामने से मुझे यह आता हुआ दिखाई दिया। जंगल में अकेले रहना खतरे से खाली नहीं था। अत: इसी के साथ रात बिताने का निर्णय लिया। हम दोनों आग जलाकर पेड़ के नीचे सो गए। अगली सुबह जब मैं उठा, तो यह मेरा धन अपना कहने लगा। अब आप ही इस कपटी से मेरा धन बचाइए।"
दोनों की बातें सुनकर उदयभान कुछ सोच में पड़ गए। उन्होंने सिपाही से कहा- " जाओ! धन की थैली हमारे पास ले आओ।" सिपाही ने वैसा ही किया। राजा ने धन की थैली खोली और उसे सूँघने लगे। सारा दरबार और वे दोनों व्यापारी राजा की इस हरकत पर हैरान थे। राजा ने अपना काम खत्म करके कहा- "असली धन का मालिक धनवीर है। लखपत को पकड़कर कारावास में डाल दो।"
लखपत राजा से दुहाई करने लगा- "महाराज! आपको कोई गलती हुई है।" उसके इस कथन से राजा को क्रोध आ गया। वह बोला- "लखपत! तुम कपड़े के व्यापारी हो। तुम कपड़ा बनाकर बेचते हो। तुमसे वही लोग कपड़े खरीदते होंगे जिनके या तो कपड़े की दुकान होगी या फिर वह जो इन कपड़ों से वस्त्रों का निर्माण करते होंगे।" लखपत होता- " जी महाराज! " राजा ने सख्ती ते पूछा- "अब तुम बताओ कि तुमने इतने दिनों में किसी रसोइये या फिर किसी मसाले वाले को कपड़ा बेचा है।" लखपत बोला- "नहीं महाराज।" उदयभान बोला- "लखपत! तो अब यह बताओ इन सिक्कों में से तरह-तरह के मसालों की गंध कैसे आ रही है?
यह इस बात का प्रमाण है कि यह धन धनवीर का है। धनवीर ने जिन्हें आपना सामान बेचा था। वे या तो मसाले बेचते थे या फिर उनका अधिक प्रयोग करते थे। जब धनवीर ने उन्हें गेहूँ और गन्ना बेचा होगा, तो उन्होंने अपने पास से यह धन उसे दिया होगा। इसलिए इस धन पर से मसालों की गंध आना स्वाभाविक है। राजा के इस निर्णय से लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। धनवीर को अपना धन वापस मिल गया था।
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