चाँद से थोड़ी-सी गप्पें
चाँद से थोड़ी-सी गप्पें
काव्यांश 1
गोल हैं खूब मगर
आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा।
आप पहने हुए हैं कुल आकाश
तारों-जड़ा;
सिर्फ़ मुँह खोले हुए हैं अपना
गोरा-चिट्टा
गोल-मटोल,
अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त।
आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे
- खूब हैं गोकि!
प्रसंग 1
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तिका वसंत भाग-1 में संकलित कविता 'चाँद से थोड़ी-सी गप्पें' से ली गई हैं। इसके रचनाकार 'शमशेर बहादुर सिंह' हैं। इन पंक्तियों में बालमन की निश्छलता को दर्शाया गया है। वह चाँद के आकार को लेकर हैरान है।
व्याख्या 1
एक लड़की चाँद से बातें करते हुए उससे…
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