क्रिया
क्रिया - अर्थ एवं भेद
कर्त्ता जिस कर्म को करता है, उसे क्रिया कहते हैं।
जैसे: जाना, खाना, पीना, खेलना, पढ़ना आदि सब क्रियाएँ हैं।
अब आपके मन में प्रश्न उठेगा कि क्रिया तो ठीक है, पर धातु क्या है?
धातु क्रिया का मूल शब्द है। संस्कृत में क्रिया के स्थान पर धातु रुप का प्रयोग होता है।
जैसे: गच्छति क्रिया 'गम्' धातु से बनी है। एक ही धातु से हम वचन, पुरुष तथा लकार (काल) के अनुरुप रुप बना सकते हैं।
क्रिया के भेद
क्रिया के दो भेद होते हैं:
(1) सकर्मक क्रिया
(2) अकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया
ऐसी क्रियाएं जिनके साथ कर्म होना अनिवार्य होता है, सकर्मक क्रिया कहलाते हैं।
जैसे: बालक: पुस्तकं पठति।
बालक पुस्तक पढ़ता है।
अहं गृहं गच्छामि।
मैं घर जाता हूँ।
अकर्मक क्रिया
ऐसी क्रियाएं जिनके साथ कर्म की आवश्यकता नहीं होती, अकर्मक क्रिया कहलाते हैं।
जैसे: रानी यतते।
रानी यत्न करती है।
लता चलति।
लता चलती है।
क्रिया को समय के अनुसार हम विभिन्न रुपों में बांट देते हैं। इसे संस्कृत में लकार (काल) कहते हैं।
संस्कृत भाषा में पाँच लकार होते हैं:
1. लट् लकार (वर्तमान)
2. लृट् लकार (भविष्यत काल)
3. लङ् लकार (भूतकाल)
4. लोट लकार (आज्ञार्थक काल)
5. विधि लिङ्ग लकार (विधिसूचक काल)
यहाँ हम आपको लोट् लकार तथा विधि लिंङ्ग लकार के कुछ धातु रुपों का परिचय कराएंगे।
तत्पश्चात् हम इनके आधार पर कुछ वाक्य बनाएंगे।
लोट् लकार
लोट लकार को आज्ञार्थक काल भी कहा जाता है। इसमें आज्ञा, निवेदन, आग्रह से जुड़े क्रिया पद आते हैं।
यथा: स: पठतु।
वह पढ़ें।
आइए अब धातु रुप की सहायता से वाक्य बनाएं।
प्रथम पुरुष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
स: |
धावतु |
धावतम् |
धावन्तु |
स: धावतु |
वह दौड़े |
||
तौ |
तौ धावत । वे दोनों दौड़ते हैं। |
||
ते |
… |
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