NCERT Solutions for Class 11 Humanities Hindi Chapter 10 कबीरदास are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for कबीरदास are extremely popular among Class 11 Humanities students for Hindi कबीरदास Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of Class 11 Humanities Hindi Chapter 10 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class Class 11 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.
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Question 1:
'अरे इन दोहुन राह न पाई' से कबीर का क्या आशय है और वे किस राह की बात कर रहे हैं?
Answer:
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Question 2:
इस देश में अनेक धर्म, जाति, मज़हब और संप्रदाय के लोग रहते थे किंतु कबीर हिंदू और मुसलमान की ही बात क्यों करते हैं?
Answer:
जिस समय की बात कबीर करते हैं, उस समय भारत में हिंदू और मुस्लिम दो धर्म विद्यमान थे। जैन, बौद्ध आदि धर्म हिन्दू धर्म की ही शाखाएँ हैं। अतः उन्हें उस समय कबीर ने अलग-अलग करके नहीं देखा है। वैसे भी इनमें मतभेद नहीं होता था। हिन्दू तथा मुस्लिम दो धर्मों के ही मध्य आपस में लड़ाई हुआ करती थी। अतः कबीर ने इन दोनों की ही बात की है।
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Question 3:
'हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई' के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं? वे उनकी किन विशेषताओं की बात करते हैं?
Answer:
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Question 4:
'कौन राह ह्वै जाई' का प्रश्न कबीर के सामने भी था। क्या इस तरह का प्रश्न आज समाज में मौजूद है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
Answer:
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Question 5:
'बालम आवो हमारे गेह रे' में कवि किसका आह्वान कर रहा है और क्यों?
Answer:
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Question 6:
'अन्न न भावै नींद न आवै' का क्या कारण है? ऐसी स्थिति क्यों हो गई है?
Answer:
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Question 7:
'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे' से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
Answer:
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Question 8:
कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद (बालम आवो हमारे गेह रे) साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इस संबंध में अपने विचार लिखिए।
Answer:
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Question 9:
उदाहरण देते हुए दोनों पदों का काव्य-सौंदर्य और शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
Answer:
यह पद रहस्यवाद की छवि प्रस्तुत करता है। यहाँ पर ईश्वर को प्रियतम के रूप में संबोधित किया गया है। यहाँ पर साधक की परमात्मा से मिलने की तड़प का सुंदर वर्णन है। साधक का प्रयास रहता है कि वह अपने परमात्मा को पाने का निरंतर प्रयास करता रहे। उसकी स्थिति प्रेमिका जैसी हो जाती है। विरह उसकी साधना में बाधक के स्थान पर मार्ग बनाने का कार्य करती है। अतः साधन इस रास्ते पर चलते हुए स्वयं को धन्य महसूस करता है। यहाँ पर प्रियतम और प्रिया के साकार प्रेम को माध्यम बनाया गया है। जो प्रेम के महत्व को दर्शाता है। इस पद की भाषा भी सरल है। इसमें कवि ने अपनी सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त इसमें परमात्मा को प्रियतम और स्वयं को प्रिया दिखाने के कारण प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग हुआ है। इसमें भी अनुप्रास अलंकार का प्रयोग देखने को मिलता है।
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Question 1:
कबीर तथा अन्य निर्गुण संतों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
Answer:
कबीरदास सारी उम्र भगवान का भजन करते रहे। उन्होंने धार्मिक आडंबरों; जैसे- व्रत, रोजे, पूजा, हवन, नमाज आदि का भरसक विरोध किया। उनके अनुसार ईश्वर इन पांखडों से प्राप्त नहीं होता। वह तो सच्ची भक्ति तथा मन की पवित्रता से प्राप्त होता है। उनके अनुसार ईश्वर को प्राप्त करना हो, तो मंदिर व मस्जिद में न ढूँढकर अपने ह्दय में ढूँढना चाहिए। उनके अनुसार गुरु ईश्वर प्राप्ति का रास्ता होता है। उसके माध्यम से ही ईश्वर को पाया जा सकता है। उन्होंने सदैव हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया व आपसी बैर को भुलाकर प्रेम से रहने का उपदेश दिया। उन्होंने जाति-पाति के नाम पर होने वाले भेदभाव का भी कड़ा विरोध किया। कबीदास जी अनपढ़ थे परन्तु उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों व नीतिपूर्ण बातों को लेखन का जामा पहनाया।
कबीरदास की भाषा साधारण जन की भाषा थी। उनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' व 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है। उनकी भाषा में ब्रज, पूर्वी हिन्दी, पंजाबी, अवधी व राजस्थानी भाषाओं का मिश्रण देखने को मिलता है। कबीर ने अपनी बात 'सबद' व 'साखी' शैली में कही है। कबीर की एकमात्र रचना 'बीजक' के रूप में मिलती है। इसके तीन अंग है- साखी, सबद व रमैनी।
कबीरदास जी की मृत्यु 1518 ई. के करीब मगहर में मानी जाती है। हिन्दू धर्म में मान्यता थी कि मगहर में जिसकी मृत्यु होती है, वह नरक में जाता है। अत: कबीरदास जी ने अंत समय में वहीं जाकर रहने का निर्णय किया और वहीं अपने प्राण त्याग दिए। कबीरदास उन व्यक्तियों में से एक थे, जिन्होंने मात्र उपदेश नहीं दिया अपितु उसे जीवन में उतार कर समाज के समाने मिसाल कायम की।
रैदास
'रैदास' भक्तिकाल के कवियों में से एक कवि माने जाते हैं। यह एक महान संत थे। इन्होंने कबीरदास जी की तरह मूर्तिपूजा, हवन, तीर्थ आदि आडंबरों का विरोध किया है। यह ब्रजभाषा के कवि थे। परन्तु इनकी भाषा में खड़ी बोली, राजस्थानी, उर्दू-फ़ारसी, अवधी आदि शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। इन्हें रविदास के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म स्थान कासी माना जाता है। इनकी माता कलसा देवी थी तथा पिता संतोख दास जी थे। अपने पिता से इन्हें जूते बनाने का व्यवसाय प्राप्त हुआ था। यह जूते बनाते थे परन्तु इससे इनकी भक्ति पर कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। अपने कार्य के प्रति समर्पित थे। जो जूते बनाते थे, उन्हें संतों और जरूरत मंद लोगों को बाँट दिया करते थे। यही कारण था कि इनके माता-पिता ने इन्हें घर से निकाल दिया। कार्य के मध्य यह किसी को नहीं आने देते थे। इनके कारण ही यह मुहावरा प्रचलित हुआ कि मन चंगा तो कटौत में गंगा। उनके अनुसार भगवान सबको समान रूप से देखते हैं। तभी तो उनके जैसे नीच कुल के व्यक्ति को उन्होंने अपने प्रेम से भर दिया है और अपने चरणों में स्थान दिया है।
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Question 2:
• प्रह्लाद सिंह टिप्पणियाँ
• भारती बंधु
Answer:
इस कार्य को विद्यार्थी स्वयं करें।
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