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बहुत समय पहले की बात है: एक झील में हरिता, तरंग तथा नीला नाम की तीन घनिष्ट मित्र रहा करती थीं। नीला समझदार थी, हरिता चालाक थी और तरंग मूर्ख और जिद्दी थीं। इसके बाद भी तीनों मित्र साथ में सुखपूर्वक रहा करते थे। झील ही उनकी दुनिया था और एक-दूसरे का साथ उनकी ताकत। परन्तु तरंग की मूर्खता उन्हें कई बार परेशानी में डाल देती थी।
एक दिन की बात है। उनकी झील में दो मछुवारे भाइयों का आना हुआ। झील में मछलियों को देखकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। बहुत दिनों के बाद उन्हें ऐसा स्थान प्राप्त हुआ था। जहाँ से मछलियाँ प्राप्त हो सकती थीं। उन्होंने योजना बनाई की कल वे बड़ा जाला लेकर आएँगे और मछलियाँ पकड़ेगें। उनकी यह बात तीनों मछलियाँ सुन रही थीं। मछुवारों की योजना ने उन्हें परेशान कर दिया था।
नीला बोली- "देखो बहनों कल मछुवारे झील में हमें पकड़ने के लिए आ रहे हैं। अपनी सुरक्षा के लिए हमें तुरंत ही कुछ-न-कुछ करना पड़ेगा।" हरिता बोली- "मछुवारों ने यह झील देख ली है। अब उनका आना यहाँ लगा रहेगा। अत: हमें चाहिए कि तुरंत ही इस झील को छोड़कर कहीं और चले जाएँ। नीला और तरंग हरिता की बात से सहमत नहीं थे। नीला जानती थी कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। परन्तु तरंग को लगता था कि उनके साथ कुछ नहीं होगा। अतः उन्हें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है।
हरिता अपने कहे अनुसार उसी रात को झील छोड़कर चली गयी। तरंग और नीला अपनी प्रिय सहेली को खोकर दुखी थे। नीला पूरी रात मछुवारों से निपटने का उपाय सोचती रही। परन्तु तरंग बेपरवाहा होकर घुमती रही। उसे अपने भाग्य पर विश्वास था। अत: उसने स्वयं को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। नीला यदि कुछ कहना भी चाहती तो वह उस पर ध्यान नहीं देती।
मछुवारे सुबह-सुबह ही जाले के साथ आ पहुँचे और उन्होंने झील में अपना जाला फेंक दिया। इससे पहले वे कुछ कर पाते, दोनों जाले की चपेट में आ गईं। लेकिन नीला घबरायी नहीं। उसने पहले ही इससे निपटने की योजना बना रखी थी। अत: उसने शांति से काम लिया। तरंग इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थी। वह अपने भाग्य को कोस रही थी। अब हाथ से बात जा चुकी थी। वह स्वयं को बचाने के लिए जितना उछलती, उतना ही जाले में उलझती जाती।
मछुवारे ने तुरंत मछलियाँ फंसी देखकर जाला बाहर निकाल लिया। उसने सबसे पहले तरंग को जाले से निकाला और टोकरी में डाल दिया। तरंग स्वयं को बचाने के लिए तड़प रही थी। परन्तु अब कुछ नहीं किया जा सकता था। नीला जाले में निर्जीव के समान पड़ी रही। मछुवारे को लगा कि यह मछली किसी कारणवश पहले से ही मर गई है। अत: उसे बेचने योग्य न जानकर तालाब में वापस फेंक दिया।
नीला अपनी समझदारी के कारण बच गयी। हरिता ने भी बुद्धिमानी की और अपनी जान बचाकर भाग गई। परन्तु तरंग अपनी मूर्खता और भाग्य के भरोसे रहने के कारण मारी गई। इसलिए कहा गया है कि मूर्ख और भाग्य के भरोसे रहने वाले लोगों को सदैव पछताना पड़ता है। हमें चाहिए कि विद्वान मित्रों की बात सुने और भाग्य के भरोसे न बैठे रहें।
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